क्या अंतर है 'मैजिस्ट्रेट' ओर 'जज' में।Deference between 'Magistrate' and 'judge'.
ये दोनों शब्द हम कई बार सुनते हे ओर हमे ऐसा लगता है कि ये दोनों एक दूसरे के समानार्थी शब्द है पर एसा बिल्कुल नही है ये दोनों पोस्ट यानी पद और इनके काम काफी अलग है। तो आइए जानते हे कया फर्क है इनके बीच।
मैजिस्ट्रेट (Magistrate):
मैजिस्ट्रेट एक न्यायिक अधिकार वाले ऑफिसर होते है, जिसे सिविल ऑफिसर भी कहते है। ये किसी शहर या जिले में कायदे की व्यवस्था करते है। वे जज की तरह कानूनी केस देखते है पर इनके अधिकार जज जितने नही होते। जज के पास जितनी कायदे बनाने की मर्यादा होती है उनसे कम मैजिस्ट्रेट के पास होती है।
इनकी तनख्वा 56,000 से 1,16,000 तक होती है।
जुडिशल मैजिस्ट्रेट : निचली अदालतों में मैजिस्ट्रेट केस की सुनवाई करते है जो बहोत प्रारभिक मामलो के केस होते है। वे सेसन जज के अधीन होते है।
चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट: चीफ जुडिशल मैजिस्ट्रेट की हैसियत से हाइकोर्ट में इन्हें नियुक किया जाता है, जो हर जिले में होते है। वे सेसन जज के अंडर में आते है।
मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट: इन्हें उन जगहों पर नियुक्त किया जाता है जहाँ की आबादी 10 लाख से अधिक है। वे सेसन जज को रिपोर्ट करते है और मुख्य नगर के मैजिस्ट्रेट के अधीन होते है।
कार्यकारी मैजिस्ट्रेट: इन्हें राज्य सरकार के अनुसार जिले में नियुक्त किया जाता है। इस पद पर दो कार्यकारी मैजिस्ट्रेट होते है, एक डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट ओर एक अडिशनल डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट।
जज (Judge): एक न्यायिक अधिकारी होते है जो अदालत की कार्यवाही का संचालन करते है। ओर केस के तथ्यों सबूतों ओर गवाई के बाद विचार करके उन न्यायिक बाबतो पर फैसला सुनाने का अधिकार रखते है। एक जज के अधिकार उनके कार्य क्षेत्राधिकार के हिसाब से अलग अलग हो सकते है। जज अकेले या जज की पैनल के साथ केस को संभालते है। वे दोनों पक्ष के मध्यस्थि के रूपमें काम करते है। दोनो पक्ष के वकीलों द्वारा तथ्यों सबूतों ओर गवाहों को सुनने के बाद अपना निर्णय सुनाते है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायाधीश यानी सुप्रीम कोर्ट के जज की नियुक्ति की जाती है। सर्वोच्च न्यायाधीश दूसरे न्यायाधीश ओर राज्यो के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद ऊंच न्यायाधीश यानी हाइकोर्ट के जज की नियुक्ति करते है।
इनकी तनख्वा 2,80,000 के आसपास जोति है।
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