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Debate ओर Discussion का हुनर सीखें।

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आपको आपके आसपास ऐसे लोगो का होना अच्छा लगता है जिनकी थिंकिंग आपके जैसी ही होती है? आप अपना ज्यादातर समय ऐसे फ्रेंड्स या लोगो के साथ बिताते है जो आपके जैसा होता है? आप ऐसे न्यूज़ ओर दूसरी चीजे देखते है जो आपकी धारना के मुताबिक हो? आमतौर पर लोगो को ऐसे इंसान ज्यादा पसंद होते है जो उनके जैसे ही हो, जिनके विचार ओर धारना एक समान हो। आप अगर ऐसे ही इंसानो के बीच मे घिरे रहेंगे जिनकी सोच और धारनाए आपके जैसी ही है तो आपका व्यक्तिगत विकास होना मुश्किल है। क्योकि ऐसे लेगो के बीचमे रहनेसे आपकी डिबेट ओर डिसकशन की एक मर्यादा आ जाती है।

आपको आपके विचारों पे क्यो दुसरो की महोर लगाना अच्छा लगता है? आपको क्यो ऐसे लोगो की जरूरत होती है जिनके विचार और धारणा आपके जैसी ही हो? आपको क्यो अच्छा नही लगता जब आप ऐसे व्यक्ति से मिलते है जिसकी सोच और धारणा आपके जैसी नही होती? आप क्यो ऐसा सोचते है कि वो व्यक्ति गलत है जिसके विचार और धारणा आपसे अलग है? कुछ लोगो को उनके इसी वर्तुल या दायरे में रहना अच्छा लगता है। उन्हें खुद उनके ही नियम और मर्यादा में रहना पसंद होता है। क्योंकि ऐसे लोग अपने आपको फ्री ओर हल्का महसुस करते है। ये लोग दूसरे नजरिये से दुनियाको देखना ही नही चाहते।


यहा पर डिबेट ओर डिसकशन का मतलब आर्गुमेंट नही है। बहोत बडा फर्क है डिबेट ओर आर्गुमेंट में। बहोत सारे स्कूल और कॉलेज में डिसकशन ओर डिबेट से खुशनुमा माहौल बनता है,क्योकि इससे एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति को समझने में सरलता होती है, ओर अलग अलग नजरिये से सोचने का मौका मिलता है। इससे व्यक्ति का मन खुलता है और वो अपने वर्तुल या दायरे से बाहर निकलता है। कई बार हमारे विचार और धारणा अलग होती है मगर ये अलग का मतलब गलत नही होता। कोई आपके जैसा नही है इसका मतलब ये नही के वो गलत इंसान है, परंतु उसके सोचने का तरीका अलग है बस। इसी लिए हमे डिबेट ओर डिसकशन से एक दूसरे को समझने का मौका मिलता है। और ये हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए भी बहोत जरूरी है। क्योंकि डिबेट से हमे नए नए आइडिया आते है और हमें आगे बढ़ने में मदद करते है।

कई संस्थाओ में डिबेट ओर डिसकशन होते है, इससे अलग अलग जगह ओर अनुभव वाले लोग मिलते है और एकदूसरे के विचारों का आदानप्रदान करते है। जब सब लोग एक जगह पर इकठे होके डिसकशन करते है तब जरूरी नही होता के सब के विचार और धारणा एक समान हो हर एक इंसान की अपनी अलग सोच और अपना नजरिया होता है। यहा पे लोग एकदूसरे के विचारों को जानते है और समझते है और उनके अलग नजरिये से भी सहमत होकर आगे बढ़ते है। डिबेट से इंसान को अपने नजरिये को बदलने ओर नए नजरिये से देखने का अवसर मिलता है। डिबेट खुले मन से ओर एकदम हल्के वातावरण में होना चाहिए।

जबतक आप डिबेट में से आर्गुमेंट ओर जघडे को निकलोगे नही तब तक आप अपना व्यक्तिगत विकास नही कर सकते।


डिबेट में knowledg का बहोत महत्व है:

डिबेट तभी सफल हो सकता है जब उसमे पूरा ज्ञान और सच्चाई हो। आपको इतना पता होना चाहिए कि आर्गुमेंट ओर डिबेट/ डिसकशन बिल्कुल अलग है। आपको डिबेट ओर डिसकशन का मतलब तभी पता चल सकता है जब आपके पास योग्य ज्ञान और सच्चाई हो। आप किसी डिबेट या डिसकशन में तभी हिस्सा ले सकते है जब आप एक ज्ञानी इंसान हो। डिबेट में लोग आपकी बातों से सहमत होते है पर ये तभी संभव होता है जब आपके पास ज्ञान और सच्चाई हो, आपको समझना होगा के ज्ञान का महत्व कितना है, ज्ञान विकाश का ब्लड है। आपको इसके लिए नई नई चीजों के बारे में जानना होगा और सीखना होगा, ओर ऐसे लेगोसे संभाल कर रहना होगा जो आपकी हरेक बातो में हा भरते है।


खुले मन से  कैसे डिबेट करे:

हमे अपने आपको चुनौती देकर हमारे विचार और धारणा को खुला रखना होगा। हमे दुसरो को सुनने के लिए तैयार रहना होगा, ओर तैयार रहना होगा हमारी गलतियो को मानने के लिए। बदलाव, सुधार, ओर ज्ञान लेना होगा दुसरो से। जब हमारा मन खुला होगा तो हमे समज आएग के कोई भी हरएक समय पे परफेक्ट ओर सही नही होता 


डिबेट साहसिक होनी चहियर:

जो लोग डिबेट ओर डिसकशन के लिए उत्साहित नही होते वो साहसिक नही होते। क्योकि साहस के बिना कोई महत्व नही है। इस लिए कुनेह नही तो गौरव नही। गौरव के लिए हमे साहस और बदलाव की आवश्यक्ता है।


पद का नेतृत्व करना:

जो लोग खुले मन के ओर हरवक्त डिबेट ओर डिसकशन के लिए तैयार होते है वोही हेड होते है। ऐसे लोग दूसरों को शांति से सुनते है और फिर उनका योग्य जवाब देते है, ये कभी गुस्सा नही करते, वो कभी ऊंची आवाज नही करते, वो पहले सुनते ही ओर बाद में जवाब देते है, वे हंमेसा शांत और हसमुख होते है, वो कभी किसी विचारको व्यक्तिगत रूप से नही लेते। वे कभी डिबेट ओर डिसकशन में आर्गुमेंट ओर जागड़ा नही करते, उनके शब्दो मे सभ्यता होती है, वे कठोर टिप्पणियो से बचते है और कभी अपनी लाइन से नही हटते, क्योकि वे बखूबी से जानते है कि तर्क और भावनाओं के बीच में क्या अंतर है, 


जिज्ञासु रहना चाहिए:

जिन लोगो को डिबेट करना पसंद होता है वो जिज्ञासु जरूर होते है, वो इस  लिए डिबेट नही करते के वो अपने आप को सही साबित करना चाहते है बल्कि इस लिए करते है क्योंकि उन्हें सही चीजो का ज्ञान होता है। उन्हें पता होता है कि वो कहा पे गलत है और कहा पे सही है। ऐसे लोग अपना ज्ञान दुसरो को बांटने की इच्छा रखते है और दूसरों से ज्ञान लेने में भी संकोच नही रखते। वे लोग ऐसा कभी नही करते कि उन्हें सब पता है बल्कि ओर ज्यादा जानने की जिज्ञासा रखते है

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